This is a heart-wrenching Hindi story of a mother whose sacrifices go unnoticed and unappreciated. It highlights her silent struggles, unconditional love, and the pain of loneliness.
मां का मौन बलिदान
छोटे से गांव में रहने वाली सुमित्रा देवी के जीवन में खुशियों का हर रंग उसके बेटे, रोहन, से जुड़ा हुआ था। सुमित्रा ने अपनी ज़िंदगी के हर सपने का गला घोंट दिया, ताकि रोहन की ज़िंदगी में कोई कमी न रहे। पति का साया तो रोहन के बचपन में ही उठ गया था, लेकिन सुमित्रा ने हार नहीं मानी।
गांव के खेतों में दिन-रात मेहनत करके उसने रोहन को शहर के बड़े स्कूल में पढ़ाया। रोहन पढ़ाई में तेज़ था और सुमित्रा को उम्मीद थी कि एक दिन वो बड़ा आदमी बनेगा। समय बीता, रोहन ने पढ़ाई पूरी की और शहर में नौकरी करने लगा।
शुरुआत में रोहन मां को हर रोज़ फोन करता था। लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीतता गया, फोन की घंटियां कम होने लगीं। सुमित्रा के लिए रोहन का फोन ही उसकी खुशियों का जरिया था।
एक दिन, सुमित्रा ने सोचा कि रोहन से मिलने शहर जाए। उसने सारा सामान पैक किया और खुशी-खुशी शहर पहुंच गई। लेकिन जब वह रोहन के घर पहुंची, तो उसे देखकर रोहन की पत्नी ने नाखुशी जताई। रोहन ने भी मां को ज्यादा भाव नहीं दिया।
This Hindi Story highlights the struggle of mother who sacrifised everything to his children.
मां का मौन बलिदान
“मां, यहां शहर में जगह कम है। आप गांव में ही ठीक हैं,” रोहन ने ठंडे स्वर में कहा।
सुमित्रा के दिल में जैसे किसी ने खंजर घोंप दिया हो। वह चुपचाप वापस गांव लौट आई।
गांव लौटकर सुमित्रा हर रोज़ उसी उम्मीद में जीती रही कि शायद रोहन कभी लौटेगा। लेकिन रोहन कभी नहीं आया। अकेलेपन और बेटे की बेरुखी ने धीरे-धीरे सुमित्रा को तोड़ दिया।एक दिन गांव वालों ने देखा कि सुमित्रा के घर से धुआं निकल रहा था। जब वे अंदर पहुंचे, तो देखा कि सुमित्रा की चूल्हे के पास गिरकर जान चली गई थी। हाथ में रोहन की एक पुरानी तस्वीर थी।
सुमित्रा के जाने के बाद रोहन गांव आया, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। मां की ममता और उसका बलिदान हमेशा के लिए मौन हो गया था।
Moral: यह कहानी हमें यह सिखाती है कि माता-पिता का सम्मान और उनकी भावनाओं की कद्र करना हमारा कर्तव्य है। उनका प्रेम अमूल्य होता है, जिसकी कीमत हम कभी चुका नहीं सकते।